Sunday, September 24, 2023
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पिता की ममता

राखी सरोज

पिता शब्द छोटा फिर भी फर्ज़ बड़े होते हैं। एक बच्चे के जीवन का आधार होने के साथ ही साथ उसकी दुनियां की सबसे अनमोल जरूरत। पिता के पास मां का आंचल नहीं होता है लेकिन ममता का सागर अपार होता है। बच्चों की खुशी के लिए हर कोशिश करता है। अपने साथ बचपन में खाना खिलाना, घुमाने ले जाना, मम्मी के गुस्से से बचाना, सब कुछ एक पिता करता है। निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों में पिता महीने भर में एक बार मिठाई समोसे भी लें आएं, उसमें भी बच्चों को जग भर की खुशियां मिल जाती है। आर्थिक हालत अच्छी ना हो फिर भी पिता के लिए उसके बच्चे बोझ नहीं होते, चाहे फिर एक ही साईकिल पर चार बच्चों को बैठा कर कोषों दूर की यात्रा क्यों ना करनी हो।

पिता की मोहब्बत और बलिदान की गाथा कोई नहीं सुनाता है क्योंकि पिता के हाथों को पकड़ बच्चे चलना सीखते हैं। उनका हाथ पकड़ खुद नहीं चलतें है। अक्सर हम बड़े होने के बाद अपने माता-पिता को कह देते हैं कि आप ने जो भी किया हमारे लिए वह आप का फर्ज था। आपने हमें पैदा किया है इसलिए आप की जिम्मेदारी बनती थी। हमारे लिए यह सब करना। किन्तु हम अपनी जिम्मेदारी भूल जाते हैं। वह माता-पिता जिनके बिना बचपन में हम एक पल नहीं रह सकतें थे। युवक होने पर उन्हीं को एक बोझ और जिम्मेदारी समझ कर दुख प्रकट करतें हैं।

पिता अपने सपनों और इच्छाओं को भूलकर कर, जिंदगी भर अपने बच्चों की खुशी के लिए संघर्ष करता है। जब वही बच्चे बड़े हो जाते हैं तब अपने माता-पिता को दर्द-दुःख और तकलीफ देते हैं। बिना यह सोचे कि वह उसके जीवन का आधार ही नहीं है, बल्कि वह इंसान हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन उनके लिए कुर्बान कर दिया है।

आज का जीवन भाग दौड़ से भरा हुआ है। हमारे पास समय बहुत कम है। ऐसे में माता पिता के लिए समय निकाल पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। किन्तु फिर भी कभी कभी हमें उनको समय देना चाहिए। जिस प्रकार से बच्चे हमारी जिम्मेदारी है। माता-पिता भी हमारी जिम्मेदारी है, उनका ख्याल हमें रखना चाहिए। वृद्ध आश्रम में उन्हें छोड़ कर हम अपनी संस्कृति और कर्तव्य दोनों से मुंह मोड़ कर जी सकते हैं। लेकिन आने वाली पीढ़ी को क्या शिक्षा दे कर जाएंगे।

आज हमारे सामाज में तलाक प्रथा का चलन बहुत अधिक हो गया है। हमारे देश में तलाक या अन्य किसी कारण से अलग रहने वाले दम्पत्तियो के बच्चे ज्यादा-तर अपनी माता के साथ रहते हैं। जिसके चलते वह पिता के प्रेम से दूर रहते हैं और वह पिता के प्रेम का एहसास नहीं पाते हैं। इसके कारण कई बार बच्चे मानसिक रूप से परेशान होते है।जिसकी वजह से बच्चों को सही रास्ता चुनने में परेशानी होती है। बच्चों के लिए माता और पिता दोनों के प्रेम एवं साथ की आवश्यकता होती है।

हमारा देश एक पुरुष प्रधान समाज है। जिसके चलते यहां पुरुष के व्यवहार में कठोरता से भरा हुआ होता है। वहां स्त्री की तरह अपने बच्चे के लिए प्रेम दिखा नहीं सकते हैं और ना ही रो सकते हैं। जिसकी वज़ह से पुरुष अपने ही बच्चों से दूरी बना कर रखने को मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में स्त्रियां ही अक्सर बच्चे की पूरी जिम्मेदारी उठाती हैं। बच्चों को पिता के प्रेम का असल एहसास हो नहीं पाता है। जिसका दुख हर वक़्त हमें सोचने को बाध्य करता है। क्या यह पुरुषों के साथ भेद-भाव नहीं है। उनको उन्ही के बच्चो से प्रेम करने की इजाज़त नहीं है।

पिता का अर्थ केवल पैसे दे कर आप की जरूरत पुरी करने वाला नहीं होता है। हमारे समाज में लड़कियों को पिता की लाडली तो कहा जाता है। किन्तु फिर भी वह उस तरह से अपने पिता के करीब नहीं रह सकती है। जिस प्रकार से एक लड़का अपने पिता के करीब होता है। यही मुख्य दुख और परेशानी है। हम पिता को पत्थर की तरह कठोर बनने की शिक्षा देते हैं। पिता का अर्थ केवल स्त्री को गर्भवती बना कर अपना नाम बच्चे को देना नहीं है। पिता की भी जिम्मेदारी और जवाबदेही होती है बच्चे के प्रति। हमें खुद की सोच को बदलना चाहिए। प्रेम और ममता जैसे शब्द मां के चरित्र में ‌ही नहीं पिता के चरित्र में भी हो सकतें हैं, बस हमें अपनी सोच बदलनी होगी।

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