*कोविड-19 के दृष्टिगत कॉमर्शियल शिशु आहार को न दें बढ़ावा*
*सभी पोषण संस्थाओं को निर्देश, न बांटे पैकेट वाला शिशु आहार*
*आईएमएस एक्ट का सख़्ती से हो पालन*
कानपुर-कोविड-19 के इस मुश्किल दौर में बच्चों की कुपोषण दर को कम करने व उनके स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग ने एक और अहम् कदम उठाया है। कोरोना महामारी के दौरान शिशु स्वास्थ्य के लिए काम कर रही सभी पोषण संस्थाओं और संगठनों को निर्देश दिये गए हैं कि वह किसी भी प्रकार का पैक्ड शिशु आहार न बाँटें।
जिला कार्यक्रम अधिकारी ज़फर खान का कहना है कि कोरोना महामारी के समय में धात्री महिलाओं एवं नवजात शिशुओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण स्तर पर विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी है। हांलाकि जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान, 6 माह तक सिर्फ स्तनपान तथा 6 माह पूर्ण होने पर माँ के दूध के साथ उपरी आहार व 2 साल तक स्तनपान शिशु का सर्वोत्तम आहार है।
जिला कार्यक्रम अधिकारी का मानना है कि यही वह समय है जब हमें अधिक प्रयास कर स्तनपान व ऊपरी आहार व्यवहार की निरंतरता को सुनिश्चित करना है। क्योंकि कृत्रिम दूध व ऊपरी आहार के डिब्बे विकल्प के रूप में कई बार गलत तरीके से प्रोत्साहित किए जाते है। जो बच्चों और माता के लिए हानिकारक होते हैं। इसी को देखते हुए बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के निदेशक शत्रुघ्न सिंह की अपेक्षा है कि भारत सरकार द्वारा पूरे देश में लागू आईएमएस एक्ट, 2003(शिशु दुग्धाहार विकल्प, दुग्धपान बोतल एवं शिशु आहार अधिनियम, 1992 जिसे 2003 में संशोधित किया गया था) का सख्ती से पालन किया जाए।
*महामारी के दौरान बच्चों को रोगों से बचाएगा माँ का दूध – डॉ. यशवंत राव*
बालरोग विभागाध्यक्ष, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, डॉ. यशवंत राव के मुताबिक माँ का दूध बच्चे के सर्वांगिक शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बेहद ज़रूरी है। साथ ही छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर उन्हें डायरिया, निमोनिया व कुपोषण जैसे रोगों से भी बचाता है। वहीँ बाज़ार में मिलने वाले डिब्बा बंद दूध में माँ के दूध के मुकाबले कम पोषक तत्व होते हैं। इसे सही तरीके से बनाने और पिलाने में लापरवाही और साफ़-सफाई का ध्यान न रखने से बच्चे जल्दी-जल्दी संक्रमण का शिकार हो सकते हैं।
*कटोरी-चम्मच से भी पिला सकते हैं माँ का दूध – यूनिसेफ ने दी सलाह*
यूनिसेफ के विशेषज्ञों द्वारा सलाह दी गयी है कि यदि कोविड के दौरान माँ स्तनपान कराने में सक्षम नहीं है तो दूध कटोरी में निकालकर चम्मच से पिला सकते है। यदि माँ इतनी ज्यादा बीमार है कि दूध निकालकर भी नहीं दे सकती, तो स्तनपान कराने के लिए एक दूसरी महिला से सहयोग ले सकती है। प्रत्येक दशा में मुंह पर मास्क लगाते हुये तथा हाथों को साफ रखना है।
यूनिसेफ़ का मानना है कि डिब्बा बंद दूध के प्रयोग से परिवार धीरे-धीरे कृत्रिम दूध और आसानी से उपलब्ध विकल्पों का सहारा ले लेते हैं जिससे शिशु माँ के दूध से वंचित रह जाते है। साथ में माँ के आत्मविश्वास में भी कमी आती है। कोविड जैसी महामारी के समय कॉमर्शियल बेबी फूड का परिवार केन्द्रित अथवा वृहद स्तर पर वितरण रोकने हेतु सरकार तथा सभी विकासशील संस्थाओं को आगे आना चाहिए।
*क्या बैन है आईएमएस एक्ट के अंतर्गत*
गर्भवती तथा धात्री माताओं एवं उनके परिवारों को मुफ्त सैंपल, दूध की बोतल एवं कृत्रिम आहार देने पर प्रतिबंध।
दो वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए डिब्बा बंद दूध कृत्रिम शिशु आहार के प्रोत्साहन पर प्रतिबंध है।किसी भी प्रकार के माध्यम से कॉमर्शियल शिशु आहार को दूसरे विकल्प के रूप में प्रचारित करना वर्जित है।
स्वास्थ्य एवं पोषण संस्थाओं को इस कंपनियों द्वारा किसी भी प्रकार का डोनेशन देने पर प्रतिबंध है।
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