राखी सरोज
बचपन और बच्चों की मासूमियत के हम सभी दीवानें होते है। लेकिन बचपन की मासूमियत का अक्सर फायदा उठाकर उन्हें अपने लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है। उन्हे बाल मजदूरी की आग में झोंक दिया जाता है। ताकि उनसे अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सकें। जिसके चलते मासूम बच्चों का बचपन शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं से अछूता रह जाता है और वह फैक्ट्री, होटल घरों में कार्य करतें हुए दूर-व्यवहार का शिकार होते हैं। अक्सर यह बच्चें अपराधों का शिकार होते हैं। जिसके चलते उनकी शारीरिक और मानसिक हालत खराब हो जाती है।
भारत में करीब 44 लाख ऐसे बच्चे हैं जो खतरनाक स्थानों पर मजदूरी कर रहें हैं। जिन्हें अक्सर स्वास्थ्य से संबंधित बहुत सी समस्या हो जाती है। कई बच्चे ऐसे भी होते हैं जो पूरी जिंदगी सही से चल भी नहीं पाते हैं। वयस्क की अपेक्षा बच्चों से बड़ी संख्या में काम करवाया जा सकता है और उनको बहुत ही नाम मात्र पैसे देने पड़ते हैं कार्यों के लिए। इसलिए बाल मजदूरी जैसे अपराध को रोकने में कमी परेशानियां आ रही है।
बाल मजदूरी किसी भी देश के लिए एक बड़ी समस्या है। हमारे देश के भविष्य कहें जाने वाले बच्चों को चंद पैसों का लालच, श्रम की राह पर ले जाएं ऐसे में देश का भविष्य बचेगा ही नहीं। देश का भविष्य अर्थात मासूम बच्चों को बचाने के लिए बाल मजदूरी की समस्या को समझा गया ओर बाल मजदूरी का विरोध किया गया। साथ ही बाल मजदूरी को एक अपराध की श्रेणी में रख, जागरूकता फ़ैलाने की सोच को ध्यान में का विचार करते हुए 12 जून को विश्व बाल श्रम विरोध दिवस के रूप में बनाने का निर्णय लिया गया।
बाल श्रम विरोध दिवस की शुरुआत 2002 से हुई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने बच्चों के द्वारा श्रम किए जाने पर रोक लगाने और बाल श्रम विरोध के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए, इस दिन की शुरुआत की थी। इस संगठन के अनुसार विश्व भर में 2002 में 21 करोड़ 80 लाख बालश्रमिक थे। वहीं एक अन्य आंकलन द्वारा यह बात भी सामने आई कि 2002 में 1 करोड़, 26 लाख, 66 हजार 377 केवल भारत में ही बाल मजदूर थें।
वह मासूम बच्चे जिन्हें स्कूलों में जाकर शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए बाल मजदूरी का शिकार हो रहे हैं। बच्चे सड़कों के किनारे, कभी कंपनियों में, कभी घरों और हॉस्टल-ढाबे जैसे स्थानों पर अक्सर ही हमें मजदूरी करते दिख जाते हैं। जिन्हें हम देख उनकी स्थिति पर दया तो दिखाते हैं। किंतु यह उन्हें उस स्थिति से निकालने का कोई प्रयास नहीं करतें हैं। पढ़ें-लिखे होने के साथ ही साथ, सम्पूर्ण रूप सक्षम होने के बाद भी हम ऐसे बच्चों की मदद करने का कोई प्रयास नहीं करते हैं। केवल बड़ी पार्टियों में उनके बारे में चंद समय बात करके खुद को भावुक और संवेदनशील बतलाने का प्रयास करते हैं। यह जानते हुए भी कि यह कार्य कानूनी अपराध होने के साथ ही एक बच्चे के मौलिक अधिकारों का हनन भी है।
गरीब और असहाय बच्चों को अपने लाभ के लिए चंद रूपयों में खरीदा और बेचा जाता है। मासूम बच्चों को गांवों और कस्बों से उनकी परेशानियों का लाभ उठाते हुए बहला-फुसलाकर कर चंद पैसों का लालच दे कर बेंच दिया जाता है। जिसके चलते वह ना चाहते हुए भी बाल मजदूरी का शिकार हो जाते हैं। कई बार ऐसे बच्चे गैर सरकारी संगठन और पुलिस द्वारा बचा लिए जाते हैं। किन्तु फिर भी बड़ी संख्या में बच्चे बाल मजदूरी का शिकार बन रहें है।
बच्चों की पसंदीदा खाने-पीने की वस्तुओं में से एक मुख्य रूप से चॉकलेट है। जिसको बच्चे बड़े चाव से खाते हैं। किन्तु इसके व्यापार उत्पादन में भी बाल मजदूरों का प्रयोग किया जाता है। जो हमारे लिए शर्म और दुख की बात है। हमारे देश में दस में से छः बच्चे खेतों में बाल मजदूरी का शिकार होते हैं। अपने ही परिवार वालों के साथ ही साथ जमींदार जैसे उच्च वर्ग के लोगों द्वारा बच्चों का शोषण किया जाता है। उनसे बाल मजदूरी करवा कर अधिक से अधिक लाभ कमाया जाता है। भारत में उत्तर प्रदेश और बिहार दो मुख्य ऐसे राज्य हैं जहां पर बहुत ही बड़ी मात्रा में बच्चों द्वारा बाल मजदूरी करवाई जाती है। जिसका मुख्य कारण यह गरीब और अशिक्षित होना है।
बाल मजदूरी एक बड़ी समस्या है लेकिन इसे रोकने के लिए कार्य बहुत ही निराशाजनक जनक है। केवल कुछ गैर सरकारी संगठनों के द्वारा ही कार्य किया जा रहा है। हमारे द्वारा निचले स्तर पर इसकी ना कोई मांग है ओर ना ही हम जरूर समझते हैं, उन मासूम बच्चों को बचाने की जिनका बचपन लोगों के लालच की बलि चढ़ जाता है।
मासूमों की मासूमियत लालच की बलि पर कुर्बान
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