Saturday, May 17, 2025
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स्वदेशी माॅडल, समृद्ध माॅडल मानव एकात्म दर्शन की स्थापना का संकल्प

ऋषिकेश -परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जन्मदिवस के अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक श्रेष्ठ चिन्तक और संगठनकर्ता थे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को वर्तमान समय के अनुसार सब के लिये उपयोगी और सर्वहित का आकार देकर प्रस्तुत की। वे एक ऐसी समावेशी विचारधारा के समर्थक थे जिससे भारत एक मजबूत और सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बन सके।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी प्रखर वक्ता, श्रेष्ठ चिंतक और राष्ट्रसमर्पित दार्शनिक थे जिनका चिंतन सदैव ही देश की उन्नति के लिये था। उन्होंने ‘मानव एकात्म दर्शन’ जैसा श्रेष्ठ चिंतन दिया। वर्तमान समय में भी उनका स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक माॅडल अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने मानव के संपूर्ण विकास के लिये भौतिक विकास के साथ आत्मिक विकास पर भी बल दिया। साथ ही, उन्होंने एक वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था की कल्पना की थी। कोविड-19 के कारण विश्व की एक बड़ी आबादी गरीबी में जीवन यापन करने को मजबूर है इसलिये दुनिया को एक ऐसे विकास मॉडल की जरूरत है जिससे सब के पास स्वच्छ जल हो, मौलिक सुविधायें हो, हर हाथ को रोजगार प्राप्त हो ताकि सभी गरिमापूर्ण जीवन जी सके। भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत और लोकल के लिये वोकल होने का संदेश दिया जिससे निश्चित रूप से हर हाथ को रोजगार मिल सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि युवाओं को यह ध्यान देना होगा कि ‘मेरा गांव, मेरा तीर्थ बने तथा मेरा गांव, मेरी शान बने’ इसके लिये सभी को अपनी जीवनशैली और सोच में बदलाव लाना होगा। अब हमें ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर की ओर बढ़ना होगा ग्रीड कल्चर से नीड कल्चर की ओर बढ़ना होगा और नये कल्चर की ओर बढ़ना होगा, ग्रीन विजन को अपनाना होगा तथा प्रकृति के साथ जीना होगा क्योंकि यही मार्ग हमारे ऋषियों ने भी हमें बताया है।
इस महापुरूष के जन्मदिवस पर सभी संकल्प लें कि हम अपने जीवन में नये-नये विचारों को जन्म दें जो हमें मानवता की ओर ले जाये; मानवता के लिये अपने जीवन को समर्पित करें ताकि समाज में समता, समानता, शान्ति तथा मानव एकात्म दर्शन की स्थापना हो सके।

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