वो ,मेरा चाँद
मेरे अहसास को
वो जानते नहीं।
वो झूठ बोलते है
कि पहचानते नहीं ।।
पहली मुला कात में
जो मशबरा हुआ।
दरिया तूफान का
जो जलजला हुआ।
कैसे बताऊ क्या?
वो जानते नहीं।।
मेरे घर के सामने
उसका मकान था।
मुफ़्लिशी का दौर था
टूटा समान था ।।
मुंडेर की तश्वीर
वो पहचानते नही ।
थी मुश्किलें बहुत
पर खुद पर गुमान था ।।
खिड़कियों के बीच मे
इक टूटा निशान था ।
निशान से दीदार को
पहचानते नही ।।
तुमको याद हों नहो
मुझको याद है ।
जुल्फों से खेलता
वो मेरा चाँद है ।।
बेरुखी में कहते हैं
हम जानते नही ।।
धीरपाल सिंह
स्वर्ण जयंती विहार कानपुर नगर