क्या शान्ति और संतोष के प्रतीक भगवान कामतानाथ आज रौद्र रूप में हैं?
आजादी से पहले इस बुन्देलखण्ड को अंग्रेजों ने लूटा और तब तक नही छोड़ा जब तक प्रति बुन्देला गरीब न हो जाये। आजादी के बाद दो प्रदेशों में बांट कर संस्कृति, भाषा, खनिज संपदा, औषधियों से भरे वन क्षेत्र आदि तमाम वैश्विक अर्थव्यवस्था में सहयोगी वस्तुओं एवं विषयों को राज्यों और केंद्र की सरकारों ने बांटा फिर बारी बारी से लूटा।
आज ऐतिहासिक आदर्श शासकों एवं धरोहरों को सहेजने का संघर्ष करते हुए आज बुन्देलखण्ड किसी बड़ी साजिश का शिकार होकर आग में जल रहा है। फैला धुँवा बुन्देलखण्ड को तमाम बीमारियों से भी ग्रसित कर रहा है। दावाग्नि का वीभत्स रूप बुन्देलखण्ड का भयावह भविष्य तय कर रहा है। आज धरती माँ पर प्रकृति के 70 प्रतिशत दोहन के बाद बचे 30 प्रतिशत प्रकृति के ऑक्सीजन से ही हम जीवित हैं यदि यह 30 प्रतिशत भी नष्ट हो गयी तो कोरोना जैसी महामारी ही नही अपितु अन्य वैश्विक मौजूदा लाइलाज बीमारियों के भयानक रूप भी सामने आएंगे जो मानव सभ्यता को खत्म करने में ज्यादा समय नही लगाएंगे।
रीवा, सतना, चित्रकूट, बाँदा, महोबा, छतरपुर एवं हमीरपुर आदि बुन्देलखण्ड के जनपदों के संपूर्ण वनक्षेत्र, जंगलों, पहाड़ों में अग्नि के रौद्र रूप ने सब तबाह कर दिया जहां सारी वनस्पतियाँ, औषधियाँ, दुर्लभ वन्य जीव और प्राकृतिक वनसम्पदाएँ जलकर नष्ट हो गयी। कितनी बस्तियाँ कितने गाँव और कितने वैदिक और ऐतिहासिक धरोहरें जलकर राख हो गईं।
प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, और आधुनिक सोशल मीडिया सब बेखबर हैं उन्हें इसमें कोई मसाला नजर नही आया। कैलिफोर्निया के जंगलों से भी भयावह आग के बढ़ते प्रलय में बुन्देलखण्ड के अस्तित्व के संकट की भावनात्मक झलकी भी किसी संपादकीय या घटनाक्रम में नजर नही आ रही जो मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और केंद्र सरकार को झकझोरना तो दूर ध्यान ही खींच पाती। कलयुग का दुष्चक्र ऐसा है कि राजा राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने वाले इन जंगलों को बचाने वह स्वयं भी कहाँ हैं?
सर्वदा से उपेक्षित रहने वाला बुन्देलखण्ड जल रहा है त्राहिमाम। तमाम बुन्देलखण्ड राज्य एवं बुन्देलीयों के अधिकारों की सामाजिक लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक संगठन भी न जाने कहाँ गायब हैं। इसमें कोई दो राय नही की तमाम संगठनों के नेतृत्वकर्ता प्रसिद्धी पाने तक ऊर्जा का सदुपयोग किया फिर किसी न किसी राजनैतिक पार्टियों का शिकार हो गए या राजनैतिक महत्वाकांक्षा में शामिल हो गए। जिससे बुंदलेखण्ड का बुन्देली भटकता गया, युवा जोश में कमी आई, बुन्देलखण्ड के आंदोलनकर्ताओं में बुद्धिजीवियों एवं वास्तविक समाजसेवियों का दोहन हुआ और आज बुन्देलखण्ड अपने ही राजनेताओं का गुलाम हो गया। उसे अब अपनी और अपने बुन्देलखण्ड की कोई चिंता नही है।
पाठा क्षेत्र, रुक्मखुर्द, बरगढ़, धारकुंडी के जंगल, रानीपुर वन्यजीव पहाड़ क्षेत्र, परानु बाबा जंगल, बरौंधा वन्यजीव बिहार, हनुमान धारा जंगल, ओहन, बहिलपुरवा, बांसा पहाड़, ददरी, देवांगना के जंगलों, मुदियादेव गांव, कुठला पहाड़, जवारिन, गोपालपुर, बनसागर, पहुवाँ, भवर, कौहारी, बीहरपुर,मुहुआडाडिन, बिगदारिन, सरैय्यन, पाढऱ कछार रेहुनटियाँ, खोह के जंगल, मझगवां, हनुवा, भौली शेषशुभकरा गांव, भरतकूप आदि अनगिनत हजारो गांव और समूचे बुन्देलखण्ड को आग ने अपने आगोस में समेट लिया है और अग्नि का रौद्र तांडव जारी है। बुन्देलखण्ड के एक बड़े भूभाग लगभग 300 किलोमीटर चारो तरफ के परिक्षेत्र को आग ने घेर रखा है।
बिना किसी बाहरी मदद के अग्नि शमन विभाग एवं ग्रामवासी अपनी सामर्थ्य से आग पर काबू पाने जाने में गिलहरी जैसा सर्वश्रेष्ठ योगदान देने में जुटे हैं। हाँ उन्हें यह जरूर पता है कि बुन्देलखण्ड की जिसने कभी सुधि नही ली वह इस घटना पर कैसे लेगा। न जाने कितने घर कितने मवेसी जल गए। औषधीय वृक्ष, सागौन, देवदार, वन संपदा और वन्य जीव आदि जलकर खाक हो गए। बुन्देलखण्ड कोरोना महामारी से नही अपितु दावाग्नि से मर रहे हैं।
क्षेत्र से मिली जानकारी अनुसार कई सरकारी विभागों जैसे रेलवे, वन विभाग, नलकूप विभाग, जलकल विभाग, नहर विभाग, कृषि विभाग, उद्यान विभाग, पुरातत्व विभाग और खनिज संपदा विभाग आदि सम्बंधित विभागों की सम्पतियों का भी भारी नुकसान हुआ है। इस दावानल से हुए समूचे नुकसान का अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। कुछ आरटीआई एक्टिविस्ट इसे बहुत बड़े घोटाले के सबूत को मिटाने के लिए की गई बड़ी साजिश से जोड़ रहे हैं उनका कहना है कि वन विभाग, वन्यजीव संरक्षण , आदि संबंधित विभागों द्वारा कई दशकों से हो रहे घोटाले से जुड़े सबूतों को मिटाने हेतु किया गया कुत्सित प्रयास है जो आज प्रलय का भीषण रूप ले चुका है जिसका अंदाजा किसी को नही था। बुन्देलीयों का कहना है कि भ्रस्टाचार के सबूत मिटाने हेतु वन विभाग ने स्वयं आग लगाई और वन विभाग कहता है महुआ बीनने वालों ने ये आग लगाई जो कि समूचे बुन्देलखण्ड को भस्म कर देना चाहती है। कई आरटीआई एक्टिविस्ट सबूतों के आधार पर दोनों राज्य एवं केंद्र से महीनों से बुन्देलखण्ड को तबाह करने पर तुली आग से जल्द काबू पाने और इसकी निष्पक्ष सीबीआई जांच की मांग कर रहें हैं आरटीआई एक्टिविस्टों के समर्थन में एक बड़े संगठन बुन्देलीयों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा, अलग राज्य की मांग कर रहा बुन्देलखण्ड राष्ट्र समिति ख़ड़ा नजर आता है बुन्देलखण्ड राष्ट्र समिति अपनी जिद के लिए जाना जाता है। बीआरएस संगठन के सामने आने से तमाम बुद्धिजीवियों, हासिए के पत्रकारों एवं समाजसेवियों और बुन्देलीयों को एक बल मिला है। भगवान कामतानाथ क्षेत्र का दोनों राज्यों के बंधन से मुक्त होने के साथ चित्रकूट धाम का सर्वांगीण विकास न हो पाना बड़ी चिंता का विषय है जब दोनों राज्यों और केंद्र में एक ही सत्ताधारी पार्टी की पूर्ण बहुमत सरकार है। संशाधनों की कमी के बावजूद ग्रामवासियों के सहयोग से कुछ बचा लेंगे की आशा से अग्निशमन और वन विभाग बड़ी तन्मयता से लगे हैं किंतु उनके भरसक प्रयास गांधी जी के तीन बंदरों की तरह दो राज्य और केंद्र सरकार के अलग अलग मुद्राओं की वजह से निष्फल हैं।
।।साहब जंगल बचेगा तभी मानव जीवन बचेगा।।
लेख
देवब्रत त्रिपाठी’देव'(साहित्यकार/स्तंभकार),खागा, फ़तेहपुर