Friday, April 26, 2024
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हॉन्ग-कॉन्ग में एक नारे के लिए चीन ने दी नौ साल क़ैद की सज़ा

‘लिबरेट हॉन्ग-कॉन्ग, रिवॉल्यूशन ऑफ़ आवर टाइम्स’

इस नारे की वजह से ही एक व्यक्ति को अब नौ साल कारावास की सज़ा सुनाई गई है।

साल 2019 में ‘लिबरेट हॉन्ग-कॉन्ग, रिवॉल्यूशन ऑफ़ आवर टाइम्स’ (हॉन्ग-कॉन्ग को आज़ाद करो, हमारे समय की क्रांति) एक आम नारा था, जिसे हज़ारों लोग लगाया करते थे और यह नारा सड़कों पर अक्सर लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों में सुनाई देता था।

पिछले सप्ताह एक व्यक्ति को इसी नारे की वजह से जेल की सज़ा सुनाई गई क्योंकि उसके पास एक झंडा था, जिस पर ये नारा लिखा हुआ था।
हॉन्ग-कॉन्ग में अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वालों का कहना है कि ये एक तरह से “बचे-खुचे लोकतंत्र के अंत की शुरुआत है।

कहाँ से आया यह नारा?

आठ शब्दों का नारा पहली बार हॉन्ग-कॉन्ग में राजनेता एडवर्ड लुंग ने 2016 में इस्तेमाल किया था. यह नारा वहाँ हुए उप-चुनावों के दौरान लगाया था, जिसमें वे उम्मीदवार थे।

वे ‘हॉन्ग-कॉन्ग इंडीजिनस’ के नेता हैं, यह एक राजनीतिक पार्टी है, जो चीन से हॉन्ग-कॉन्ग की आज़ादी की माँग करता है
लुंग ने कहा था, “यह नारा स्वतंत्रता में विश्वास रखने वाले लोगों का प्रतिनिधित्व करता है और ये उन लोगों के ख़ून और पसीने का प्रतीक है, जो उस स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना चाहते हैं”।

जब पहली बार ये नारा लगा तो इस पर किसी ने ख़ास ध्यान नहीं दिया और यही माना गया कि हॉन्ग-कॉन्ग के ज़्यादातर लोग चीन से आज़ादी के समर्थक नहीं हैं लेकिन पहली बार इस नारे के लगाए जाने के बाद से अब स्थितियाँ बहुत बदल चुकी हैं।

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हॉन्ग-कॉन्ग में लगातार लोकतंत्र समर्थकों लोगों में सरकार के प्रति ग़ुस्सा बढ़ता दिखाई दे रहा है. ये नारा रैलियों में गूंजने लगा था और बहुत सारे लोग इसे झंडों, टी-शर्ट और टोपियों वगैरह पर छपवा रहे थे।

ये नारा अक्सर कैंटोनीज़ और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखा होता है. इस नारे को आम तौर पर काले बैकग्राउंड पर सफ़ेद अक्षरों में लिखा जाता है.

इस नारे को ग़ैरक़ानूनी क्यों माना जा रहा है?

हॉन्ग-कॉन्ग के अधिकारियों ने 2016 में ही इस नारे पर एतराज़ ज़ाहिर किया था. हॉन्ग-कॉन्ग की मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कैरी लैम ने कहा था कि ये देश की संप्रभुता को चुनौती देता है

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कैरी लैम ने कहा था, “यह एक अलग शासन व्यवस्था की माँग करता है. एक देश के भीतर दो शासन व्यवस्था ही नहीं चल सकती”।

30 जून 2020 विवादास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लागू कर दिया गया था. इस क़ानून में बहुत व्यापक तरीक़े से “राष्ट्र विरोधी गतिविधियों” की व्याख्या की गई है. इस क़ानून के तहत हर तरह के विरोध प्रदर्शनों और नारों पर कड़ा शिकंजा कसा गया है।

नए क़ानून के तहत विरोध के नारों को राजद्रोह की श्रेणी में रखा गया है. नए क़ानून के लागू होने के अगले ही दिन टोंग यंग-किट ने अपनी मोटरसाइकिल पर यह झंडा लगाया था और वे उस झंडे के साथ पुलिसकर्मियों के बीच पहुँचे थे

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इस घटना के बाद हॉन्ग-कॉन्ग प्रशासन ने कहा था कि लोग “इस झंडे और नारे का इस्तेमाल न करें और राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून का उल्लंघन करने से बाज आएँ वरना उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी”।

इस सप्ताह के शुरू में हॉन्ग-कॉन्ग की एक अदालत ने टोंग को “आतंकवाद और अलगाववाद फैलाने” का दोषी पाया है. हॉन्ग-कॉन्ग में लागू हुए नए राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत दंडित किए जाने वाले वे पहले व्यक्ति हैं।

इस सज़ा का मतलब क्या है?

टोंग के ख़िलाफ़ मुक़दमा केवल 15 दिन तक चला और इस मुक़दमे में कोई ज़ूरी नहीं थी और सारी बहस इस बात पर हुई कि आख़िर इस नारे का मतलब क्या है. क्या ये चीन से अलग होने की वकालत करता है?

सरकारी वक़ील का कहना था कि इस नारे का अर्थ एकदम साफ़ है और इसे “शाब्दिक अर्थों में ही समझना चाहिए.” ये नारा एक ऐसे व्यक्ति ने दिया है जो चीन से हॉन्ग-कॉन्ग की आज़ादी का समर्थक है।

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लेकिन बचाव पक्ष के वकील का कहना था कि इस नारे का मतलब समय के साथ बदला है. इसे शाब्दिक अर्थों में नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में देखा-समझा जाना चाहिए

कुछ जानकारों ने इस मामले में कहा कि ये नारा “ऐतिहासिक बदलाव की बात करता है” और हॉन्ग-कॉन्ग को अधिक स्वतंत्रता दिए जाने की तरफ़दारी करता है लेकिन इसे अलग होने की माँग के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.

आख़िर में तीन जजों की बेंच ने यह फ़ैसला दिया कि “यह नारा दूसरे लोगों को भी अलगाववाद का रास्ता अपनाने की तरफ़ उकसा सकता है”।

जजों ने टोंग को नौ साल के लिए जेल भेजने का फ़ैसला सुनाया और यह फ़ैसला एक तरह से नज़ीर बन गया है अब बाक़ी लोग इस नारे का इस्तेमाल करने से पहले टोंग के मुक़दमे के बारे में ज़रूर सोचेंगे,

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इस नारे का इस्तेमाल करने के लिए हॉन्ग-कॉन्ग में और भी कई लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत हिरासत में लिया गया है और उनके मुक़दमे की सुनवाई चल रही है।

हॉन्ग-कॉन्ग में मानवाधिकार मामलों के एक वकील मार्क डेली में इस नए क़ानून के ‘बिना रोक-टोक इस्तेमाल’ पर चिंता ज़ाहिर की है. उनका कहना है, “ये क़ानून बहुत ही ढीले-ढाले तरीक़े से ही बनाया गया है और इसे किसी भी व्यक्ति पर आसानी से लागू किया जा सकता है”

बीबीसी से बातचीत में डेली ने कहा कि यह मानवाधिकार के लिए चिंता का विषय है और इस क़ानून में संतुलन की कमी है. ख़ास तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए ये बहुत बड़ा ख़तरा है।

मानवाधिकार समर्थक कार्यकर्ताओं का कहना है कि “ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करने वाले लोगों को डराने का प्रयास है”।

मानवाधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाली प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की एशिया प्रशांत क्षेत्र की निदेशक यामिनी मिश्रा ने कहा कि टोंग को दोषी ठहराया जाना और ऐसी सज़ा दिया जाना “हॉन्ग-कॉन्ग में मानवाधिकारों की बिगड़ती हालत को दिखाता है”।

यामिनी मिश्रा का कहना है कि किसी को एक लोकप्रिय नारे की वजह से इतनी कड़ी सज़ा देना न्यायसंगत नहीं लगता और यह “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अपराध की श्रेणी में डालता है.” उन्होंने कहा कि टोंग को सज़ा दिया जाना “हॉन्ग-कॉन्ग में मानवाधिकारों के लिए एक अशुभ संकेत है.”

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